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________________ (८४) आलाप पद्धति चेतन माना हैं। (समानशील व्यसनेषु सख्यं) व्यवहार शब्दका प्रयोग जब उपचार अर्थमें किया जाता है तब सब व्यवहार कथन हैं । बद्ध जीवको मूर्त-अचेतन कहना जीवसे बद्ध कर्म को सचेतनअमूर्त-सूक्ष्म कहना यह सब उपचार कथन हैं। भूतनैगमनयसे सिद्धोंमे तीर्थ-लिंग-लेश्या-उपपाद ख्याति आदि विकल्पकी अपेक्षासे भेद मानना उपचार कथन हैं। भाविनगमनयसे श्रेणिक आदि जीवोंको भावी तीथंकर मानकर उनकी वंदना करना यह सब उपचार नय कथन है। १० एकांत पक्ष दोष (नयाभास) अधिकार दुर्ययकान्तमारूढा भावानां स्वाथिका हिते । स्वार्थिकाश्च विपर्यस्ता सकलंका नया यतः ।। जो नये सत्-असत्-नित्य-अनित्य आदि अनेकान्तात्मक धर्मोमन्मेसे किसी एक धर्मकोही सतप परमार्थ मानते है दूसरे धर्मोका अभाव मानते हैं, सर्वथा निषेध करते है वे स्वार्थिकअपनी स्वेच्छानुसार विपरीत वस्तु स्वरुप मानते हैं, उनको मिथ्या-विपरीत नय कहते है। वे कलंक-दोष युक्त होनेसे उनको नया भास कहा हैं। संस्कृत नयचक्रमें पाठ भेद है दुर्णयकांत मारूढा भावा न स्वार्थिकाहिताः । स्वाथिकास्तद् विपर्यस्ता निष्कलंका नयायतः ।। जो दुर्नय एकांत पक्षारुढ हैं वे अपने स्वार्थ-स्वप्रयोजनकी भी सिद्धि नही कर सकते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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