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गुण व्युत्पत्ति अधिकार
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पारिणामिक स्वभावत्वेन परमस्वभावः ॥ ११६ ।।
प्रत्येक द्रव्य अपने अपने स्वतः सिद्ध पारिणामिक स्वभावमें रहते है इसलिये परम स्वभाव है ।।
प्रदेशादि गुणानां व्युत्पत्तिः, चेतनादि विशेष स्वभावानांच व्युत्पत्तिः निगदिता ॥ १७१ ॥
द्रव्यके प्रदेशत्वादि सामान्य गुणोंकी तथा चेतनत्वादि विशेष गुणोंको व्युत्पत्ति कही गई है। (सूत्र ९२ से १०४ तक)
धर्मापेक्षया स्वभावा गणाः न भवन्ति ॥ ११८ ।।
स्वभाव को धर्म भी कहते है। यहां धर्मका अर्थ स्वभाव हैं इसलिये धर्मको अपेक्षासे स्वभाव गुणस्वरुप नहीं है। क्योंकि गुण ध्रुवरुप नित्य रहते है । और धर्म-स्वभावरूप परिणमन कभी स्वभाव रुप कभी परके संयोगवश विभावरुप भी परिणमते है।
स्वद्र व्यचतुष्टयापेक्षया परस्परं गुणाः स्वभावाः भवन्ति ॥ ११९ ॥
स्वद्रव्य-स्वक्षेत्र-स्वकाल-स्वभाव इनकी विवक्षासे गुण परस्परमें स्वभाव भी होते है।
जैसे वस्तुमें अस्तित्व गुण अपना अस्तित्व स्वभाव सिद्ध करता हैं तथा अन्यगुणोंका भी अस्तित्व स्वभाव सिद्ध करता हैं।
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