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________________ गुण व्युत्पत्ति अधिकार (७७ ) पारिणामिक स्वभावत्वेन परमस्वभावः ॥ ११६ ।। प्रत्येक द्रव्य अपने अपने स्वतः सिद्ध पारिणामिक स्वभावमें रहते है इसलिये परम स्वभाव है ।। प्रदेशादि गुणानां व्युत्पत्तिः, चेतनादि विशेष स्वभावानांच व्युत्पत्तिः निगदिता ॥ १७१ ॥ द्रव्यके प्रदेशत्वादि सामान्य गुणोंकी तथा चेतनत्वादि विशेष गुणोंको व्युत्पत्ति कही गई है। (सूत्र ९२ से १०४ तक) धर्मापेक्षया स्वभावा गणाः न भवन्ति ॥ ११८ ।। स्वभाव को धर्म भी कहते है। यहां धर्मका अर्थ स्वभाव हैं इसलिये धर्मको अपेक्षासे स्वभाव गुणस्वरुप नहीं है। क्योंकि गुण ध्रुवरुप नित्य रहते है । और धर्म-स्वभावरूप परिणमन कभी स्वभाव रुप कभी परके संयोगवश विभावरुप भी परिणमते है। स्वद्र व्यचतुष्टयापेक्षया परस्परं गुणाः स्वभावाः भवन्ति ॥ ११९ ॥ स्वद्रव्य-स्वक्षेत्र-स्वकाल-स्वभाव इनकी विवक्षासे गुण परस्परमें स्वभाव भी होते है। जैसे वस्तुमें अस्तित्व गुण अपना अस्तित्व स्वभाव सिद्ध करता हैं तथा अन्यगुणोंका भी अस्तित्व स्वभाव सिद्ध करता हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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