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स्वम व व्युत्पत्ति अधिकार गुण-गुणी आदि अभेदस्वभावत्वात् अभेद स्वभावः ।। ११३ ॥
___ गुणोंके समुदाय का नाम ही द्रव्य हैं । गुण-और गुणी इनमें यद्यपि संज्ञाभेद है तथापि वस्तुभेद नहीं है। इसलिये वस्तु अखंड एक अभेद स्वभाव है ।
भाविकाले स्वस्वभाव भवनात भव्य स्वभावः ॥ ११४ ॥
- प्रत्येक द्रव्य प्रत्येक समय में अन्य अन्य आकाररुप होता है इसलिये भाविकालमें होने योग्य होनेसे भव्य हैं।
भवितयोग्यं भव्यत्वं तेन विशिष्टत्वात् भव्यः । भाविकाल में होने योग्य है। इसलिये भव्य है।
कालत्रये अपि परस्वरुपाकार अभवनात् अभव्य स्वभावः ।। ११५ ॥
तीनों कालमें कदापि पर द्रव्यस्वरुपाकार न होनेके कारण अभव्य है । अण्णोणं पविसंता दिता ओगास मण्णमण्णस्स :
मेलंता विय णिच्चं सगं सभावं ण मुंचंति ॥ (पंचास्तिकाय) लोकाकाशमें धर्मादिद्रव्य एकमेकमें परस्पर प्रवेशकर एक क्षेत्रावगाहरुपसे रहते है। परस्पर में प्रवेश कर रहते है तथापि प्रत्येक द्रव्य अपने अपने स्वरुपसे गुणस्वभावसे च्युत नहीं होते। प्रत्येक द्रव्य सभी अपने अपने प्रदेशोंमें अपने अपने स्वभावमें रहते है।
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