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गुण व्युत्पत्ति अधिकार
चैतन्यं अनुभूतिः स्यात् सा क्रियारूपमेव च । क्रिया मनोवचः कायैष्वन्विता वर्तते ध्रुवं ॥
चैतन्य का नाम अनुभूति है । वह भी वेदनरूप जाननेरुप क्रियारुप ही हैं । निश्चयसे मन-वचन काय की क्रियाओंके साथ शुद्धोपयोगरूप आत्मानुभति का नाम ही चैतन्य हैं ।
ज्ञानचेतना - आत्मा - अनुभूति - आत्मोपलब्धि - आत्मसंवेदन ये सब एकार्थ वाचक है ।
अचेतनस्य भावः अचेतनत्वं अचैतन्यं अननुभवनं ।। १०२ ।।
अचेतनका जो भाव वह अचेतनत्व सामान्य गुण है | स्वका तथा परका अनुभवन - वेदन- ज्ञान न होना यह अचेतनत्व गुण है । चेतन - जीवके व्यतिरिक्त अन्य पांच द्रव्य - पुद्गल - धर्म-अधर्मआकाशकाल इनको स्व का या परका कुछ भी वेदन- अनुभवनज्ञान होता नही इसलिये अचेतनत्व अचेतन द्रव्योंका यह सामान्य गुण हैं ।
मूर्तस्य भावः मूर्तत्वं । रुपादिमत्वं ॥ १०३ ॥
मूर्तका जो भाव वह मूर्तत्व है । रूपादिमत्त्व - स्पर्शरसगंध वर्णवान्पना होना यह मूर्तत्व हैं ।
केवल पुद्गल द्रव्य ही मूर्त है । ( स्पर्शरसगंध वर्णवन्तः पुद्गलाः )
विशेषार्थ - तथा च मूर्तिमान् आत्मा सुराभिभवदर्शनात् ॥
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