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गुण व्युत्पत्ति अधिकार
सीदति स्वकीयान् गुणपर्यायान् व्याप्नोति इति सत् ।
जो द्रव्य अपने गुण अपनी पर्यायो में 'अन्वयरूपसे रहता है, व्यापता हैं उसे सत् कहते हैं ।
सम् एकीभावेन स्वकीय गुणपर्यायान् अयते इति समय: ( समयसार ) जो अपनी गुणपर्यायोंके साथ एकत्व पनेसे अन्वय रुपसे सदा सर्वकाल सत्रुपसे रहता है उसको समय-पदार्थ कहते हैं ।
( ६५ )
वस्तुनो भावः वस्तुत्वं, सामान्य- विशेषात्मकं वस्तु ॥ ९५ ॥
वस्तुका जो वस्तु स्वभाव सामान्य विशेषात्मक स्वभाव उसको वस्तुत्वगुण कहते हैं ||
वस्तु का जो उत्पाद-व्यय-धोव्यात्मक अर्थ क्रियाकारित्व उसको वस्तुत्व कहते है ।
विशेषार्थ - सामान्य विशेषात्मा अर्थः । तदर्थो विषयः । सामान्य विशेषात्मक पदार्थ यह प्रमाणका विषय होता हैं । सामान्यं द्वेधा । तिर्यक् – ऊर्ध्वताभेदात् ।
सामान्यके दो भेद है । १ तिर्यक् सामान्य, २ ऊर्ध्वता
सामान्य.
सदृश परिणामः तिर्यक् सामान्यं । खण्डमुण्डद्विषु गोत्ववत् ।
जैसे - खांड बैल - मुण्डबैल इत्यदिमें गोत्व सदृशधर्म पाया जाता है, वैसे अनेक द्रव्योमें तथा एक द्रव्यके अनंत गुणोमें, एक
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