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________________ ( ६४ ) देसं रज्जं दुग्गं एवं जो चेव भणइ मम सव्वं । उहत्थे उवयरिओ होइ असब्भूय ववहारो ॥ आलाप पद्धति ( नयचक्र ) देश - राज्य - दुर्गं (किला) आदि चेतन सहित अचेतन पदार्थोंमें ममत्व बुद्धि का उपचार करना यह स्वजाति-विजाति उपचरितअसद्भूत व्यवहार नय हैं । || इस प्रकार नय भेदोंका वर्णन समाप्त ॥ ७ गुण - व्युत्पत्ति अधिकार सह भुवो गुणाः, क्रमवर्तिनः पर्यायाः ॥ ९२ ॥ जो द्रव्यमें सबगुणों के साथ युगपत् सदाकाल रहते हैं उनको गुण कहते हैं । तथा जो द्रव्यमें शक्तिरुपसे सत्रुपसे सदा विद्यमान रहते है । परन्तु एक के बाद एक क्रमसे नियतं क्रमबद्ध पर्याय रूपसे प्रगट होते है उन्हे पर्याय कहते है । गुण्यते पृथक् क्रियते द्रव्यं द्रव्याद्यैः (द्रव्यान्तरे : ) ते गुणाः ।। ९३ ।। जो अपने विवक्षित द्रव्यको अन्य द्रव्योंसे पृथक् लक्षित करते है उन्हे गुण अथवा लक्षण कहते हैं ॥ अस्ति इति एतस्य भावः अस्तित्वं सद्रूपत्वं ॥ ९४ ॥ अस्ति इस प्रकार द्रव्यके सद्भाव रुप सत्रुप स्वभावको अस्तित्व गुण कहते है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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