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________________ नय अधिकार (६३) विजातीय ये भिन्न होकर भी उनमें ममत्व बुद्धि रुप उपचरित उपचार संबंध स्थापित करना, यह स्वजाति-विजाति-उपचरितअसद्भूत व्यवहार न्य हैं। विशेषार्थ- उपचारादपि उपचारः क्रियते यत्र सःउपचरितअसद्भुत व्यवहार, सः सत्य-असत्य-उभयार्थेन त्रेधा ।। जो नय उपचारमें भी उपचार करता है वह उपचरित असद्भुत व्यवहार नय है। उसके तीन भेद है। १ सत्य, २ असत्य, ३ उभय. १) पुत्र-मित्र-कलत्र आदि जो अपने स्वजातीय लोक व्यवहारमें सत्य कहा जाता है उसे स्वजाति-उपचरित असद्भत व्यवहार नय कहते है। पुत्र मित्र कलत्रादि ममैतद् अहमेव वा। वदन् एवं भवत्येषोऽसद्भूतो हयुपचारवान् ॥(सं. नयचक्र) पुत्ताइ बंधुवग्गं अहंच मम संपयाइ जंपतो। उक्यारा सब्भूओ सज्जाइ दव्वेसु णायव्वो ॥ (प्रा. नयचक्र) २) हेमाभारण वस्त्रादि ममेदं यो हि भाषते । उपचाराद् असद् भूतो विद्वद्भिः परिभाषितः । हेम आभरण रत्न आदि विजातीय अचेतन पदार्थों में ममत्व बद्धि का उपचार करना यह विजाति उपचरित असद्भुत व्यवहार नय हैं। ३) देशं राज्यं च दुर्गच गृहातीह ममेति यः । उभयार्थोपचारत्वात् असद्भूतोपचारतः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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