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________________ ( ६२ ) उपचारित - असद्भूत व्यवहारः त्रेधा ॥ ८८ ॥ उपचरित असद्भूत व्यवहार नय के तीन भेद हैं । आलाप पद्धति स्वजाति- उपचरित - असद्भूत व्यवहारो यथा पुत्रदारादिः मम ॥ ८९ ॥ स्वजातीय पुत्र - कलत्र आदि अपनेसे भिन्न होकर भी ये मेरे है ऐसा स्वजातीय भिन्न द्रव्योंमें उपचरित उपचार संबंध स्थापित करना यह स्वजाति - उपचरित - असद्भूत ( व्यवहारा नय हैं | विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहारो यथा - वस्त्र रत्नाभरण - हेमादिः मम ॥ ९० ॥ वस्त्र - आभरण - रत्न- सुवर्ण आदि भिन्न विजातीय अचेतन पदार्थो में ममत्व बुद्धि रुप उपचरित उपचार संबंध स्थापित करना यह विजाति - उपचरित असद्भूत व्यवहार नय है ॥ स्वजाति-विजाति- उपचरित असद्भूत व्यवहारो यथा- देश - राज्य - दुर्गादिः मम ॥ ९१ ॥ || इस प्रकार उपचरित असद्भूत व्यवहार के तीन भेदोंका वर्णन समाप्त ॥ देशमें रहनेवाले जीव स्वजातीय और मकान - भूमि आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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