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नय अधिकार
( ६१) __ अर्थ - स्वजातीय - अन्यजीव द्रव्य, विजातीय अन्यअजीव द्रव्य इनमे अन्य द्रव्यादिका आरोपकर कथन करना यह स्वजाति-विजाति-असद्भूत व्यवहार नय हैं।
जैसे- ज्ञेय जीव पदार्थ या अजीव पदार्थ ज्ञानका विषय होने के कारण यह जीवज्ञान यह अजीव ज्ञान- इस प्रकार कथन करना.
विशेषार्थ- अन्य प्रसिद्ध धर्मका अन्यत्र समारोप करना यह असद्भूत व्यवहार नय हैं।
यह समारोप जब स्वजाति अन्य द्रव्यका अन्य द्रव्यमें किया जाता है तब वह स्वजाति-असद्भुत व्यवहार नय कहलाता हैं ।
परमाणु एक प्रदेशी होकर भी अन्य परमाणुओंके साथ संबद्ध होनेसे उसको बहुप्रदेशी कहा जाता है।
विजातीय द्रव्यका विजातीय द्रव्यादिकमें जो समारोप किया जाता है । वह विजाति-असद्भूत व्यवहार नय है। जैसेमतिज्ञान मूर्त इंद्रियादि के द्वारा होता है इसलिये मूर्त मतिज्ञान कहना । तथा अन्यत्र प्रसिद्ध धर्मका स्वजातीय और विजातीय दोनोमें समारोप किया जाता है वह स्वजाति-विजाति असद्भूत व्यवहार नय हैं । स्वजातीय जीव-विजातीय अजीव पदार्थ ज्ञानके विषय होनेसे जीव ज्ञान अजीव ज्ञान कहना यह स्वजातिविजाति असद्भूत व्यवहार नय हैं।
॥ इति असदभूत व्यवहार नय कथन समाप्त ॥
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