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________________ (६०) आलाप पद्धति स्निग्धत्वरुक्षत्व गुणके कारण दो अथवा दो से अधिक संख्यात-असंख्यात-अनंत परमाणु ओंकी जो बहुप्रदेश रूप स्कंध अवस्था उसको स्वजाति १ असद्भूत व्यवहार नय कहते है। २) विजाति असद्भूत व्यवहारो यथामूर्तं मतिज्ञान मूर्तद्रव्येण जनितं ।। ८६ ॥ कर्मोपाधि सापेक्ष जीवके मतिज्ञानादि विभाव अवस्था परिणमन मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम निमित्त से होना यह विजाति२ असद्भूत व्यवहार नय है । ३) स्वजाति-विजाति-असदभूतव्यवहारो यथा- ज्ञेये जीवे-अजीवे ज्ञानमिति कथनं, ज्ञानस्य विषयत्वात् ॥ ८७ ॥ टोप-१ अणुरेक प्रदेशोऽपि येनानेकप्रदेशकः । वाच्यो भवेत् असद्भुतो व्यवहारः स कथ्यते ।। । सं नयचक्र पृ. ४७ ) घटपटादि संबंध प्रबंध: परिणति विशेष कथकः । टीप-२ एकेंद्रियादि जीवान्त शरीराणि स्वरूपाणि ।। शरीरमपि यो जीवं प्राणिनो वदति स्फुटं । असद्भुतो विजातीयो ज्ञातव्यो मुनिवाक्यतः ।। ८ ।। मूर्तमेवमिति ज्ञानं कर्मणा जनितं यतः । यदि नैव भवेत् मूर्त मूर्तेन स्खलितं कुतः ।। ( सं नयचक्र पृ. ४५ ) . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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