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________________ आलाप पद्धति द्रव्यके अनेक प्रदेशोमे जो अन्वयरुप सदृशता पाई जाती है बह तिर्यक् सामान्य है । तथा एक द्रव्यके कालभेदसे पूर्वोत्तर पर्यायों में जो एक अन्वयधर्म पाया जाता है यह ऊर्वतासामान्य है। विशेषाश्च । एक द्रव्यमें गुण विशेष तथा पर्यायविशेष अनेक होते है। व्यतिरेकिण: पर्यायाः । यह वह नहीं ऐसा परस्पर व्यतिरेक पर्यायोमे पाया जाता हैं । अन्वयिनो गुणा: । गुणोंमे यह वही हैं इस प्रकार एकद्रव्यका अन्यय पाया जाता है। इस प्रकार द्रव्य सामान्य विशेषात्मक अन्वय व्यतिरेकात्मक हैं । यह वस्तुका वस्तुत्व है । एकस्मिन् द्रव्ये क्रमभाविनः पर्यायाः । आत्मनि हर्षविषादादिवत् । अर्थातरगतः विसदृशपरिणामः व्यतिरेकः । गोमहिषादिवत् ।। द्रव्यस्य भावः द्रव्यत्वं, निजनिजप्रदेशसमूह: अखंडवृत्या स्वभाव-विभाव पर्यायान् द्रवति द्रोष्यति, अदुद्रुवत् इति द्रव्यम् ।। ९६ ॥ द्रव्यका जो भाव वह द्रव्यत्व है । अपने अपने प्रदेशसमूहके साथ जो अपने अपने स्वभाव-विभाव पर्यायोप्रत अन्वय रुपसे द्रवण-गमन करता है, आगे सदा गमन करेगा, भूत काल में गमन करते आया उसको द्रव्य कहते हैं। द्रव्यत्रिकाल अवस्थायी होते हुये भी प्रतिसमय परिणमनशील है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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