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(५८)
आलाप पद्धति
ऋजुसूत्र इनके प्रत्येकके दो दो भेद तथा शब्दादि प्रत्येक एकएक इस प्रकार (१०+६+३+२+२+२+१+१+१ ) नयोंके कुल भेद जोड २८ भेद होते है।
उपनय भेदा उच्यन्ते ॥ ८० ॥ उपनय के भेद कहते है । सद्भूत व्यवहारो द्विधा ॥ ८१ ।। सद्भूत व्यवहार नय के दो प्रकार है । १ शुद्ध सद्भूत २ अशुद्ध सद्भूत
शुद्ध सद्भुत व्यवहारो यथा- शुद्धगुणगुणिनोः शुद्ध-पर्याय-पर्यायिणो: भेद-कथनम् ॥ ८२॥
कर्मोपाधिरहित स्वाभाविक गुण और स्वतः सिद्ध आत्मा गुणी तथा कर्मोपाधिरहित स्वभाव पर्याय और कर्मोपाधिरहित शुद्ध सिद्ध परमात्मा इनमें तादात्म्य लक्षण अभेद होते हुये संज्ञा लक्षण प्रयोजनादि भेद के कारण भेद कथन करना यह शुद्धसद्भूत व्यवहार नय है ।
जैसे- केवलज्ञानी परमात्माके केवल ज्ञानादि गुण इस प्रकार गुण गुणीमें भेद कथन करना ।
सिद्धपरमात्माके- सिद्ध पर्याय. इस प्रकार पर्याय पर्यायवान् आत्मामें भेद कथन करना. ।
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