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नंदिसेणं-नंदीषेणने
सहनंदि-सुखनी वृद्धिने अभिनंदि-समरत प्रकारे समृ- | मम य-अने मने द्धि अथवा आनंद
दिसउ-आपो परिसा वि अ-श्रोताओनी स- | संजमे नंदि-संयमने विष आभाने पण
नंदने भावार्थ-श्रीअजितनाथ तथा शांतिनाथ लोकोने हर्ष आपो, समृद्धि आपो, नंदीषणने विशेष समृद्धि आपो, श्रोताओने सुखनी वृद्धि आपो अने संयमने विष आनंदने आपो. ३७.
___आ स्तवननो महिमा कहे छे.पक्विअचाउम्मासिअ-+संवच्छरिए अवस्स भणिअव्वोर। सोअव्वो सव्वेहिं, उवसग्गनिवारणो एसो॥३८॥
(गाहा) शब्दार्थएसो-आ अजितशांति स्तवन | संवच्छरिए-सांवत्सरिक प्रतिपक्खिअ-पाक्षिक
क्रमणने विषे चाउम्मासिअ-चातुर्मासिक । अवस्स-अवश्य
- + संवच्छर राइए अदीअहे अ इति पाठान्तरं. . x आ स्तवन एकज जणे भणवानुं कर्तुं छे तेनुं कारण ए के एक साथे घणाना बोलवाथी कोलाहल थाय तेथी सर्वने उपयोग पूर्वक संभळाय नहि तेथी एक साथे बोलवानी पद्धति उचित नथी.
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