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________________ भणिअव्वो भगवानो छे सोअन्वो-सांभळवानो छे सव्वेहिं - बीजा सर्वेए भावार्थ- पाक्षिक, चातुर्मासिक अने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणने 'विषे आ अजितशांतिस्तोत्र एक जणे अवश्य भणवो अने बीजा सर्वेए - सांभळवो. केमके आ स्तव उपसर्गनो नाश करनार छे. (एक साधे सर्व भणे तो कोलाहलनो संभव छे, माटे एक जणे ज भणवो ए योग्य छे.) ३८. जो पढइ जो अनिसुणइ, भओ कालं पि अजिअसंतिथयं । जो पढइ - जे माणस भणे जो अ निसुणइ-अने जे माणस सांभळे नहु हुंति तस्स *रोगा, पुव्वुष्पन्ना विणासंति ॥ ३९॥ ( गाहा ) शब्दार्थ उभओ कालं पि-प्रातः काळ तथा सायंकाळ सायंकाळ बन्ने ३९८ शांति स्तवने न हु हुंति - थता ज नथी तेम तस्स - तेने रोगा - कास, श्वास, विगेरे रोगो पुव्प्पन्ना वि - पूर्वे उत्पन्न थयेला होय ते पण णासंति-नाश पाने छे * कास, श्वास, भगंदर, कोढ वगेरे रोगो, अथवा सर्व प्रकारनी वखत अजिअसंतिथयं - आ अजित उवसग्गनिवारणो- उपसर्गने निवारण करनार पीडाओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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