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संथवारिहं । हथिहत्थबाहु धंतकणगरुअगनिरुवहयपिंजरं पवरलक्खणोवचिअसोमचारुरूवं, सुइमुहमणाभिरामपरमरमणिज्जवरदेवदुंदुहिनिनायमहुरयरसुहगिरं ॥९॥
(वेड्डओ)
शब्दार्थ:
सावत्थि-श्रावस्ति पुव्वपत्थिव-प्रथमराजा वरहत्थि-श्रेष्टहाथीना मत्थय-मस्तकनी पसत्थ-प्रशस्त विच्छिन्न-विस्तीर्ण
समान संथिय-संस्थान थिर-स्थिर सिरिच्छ-श्रीवत्सवाळु वच्छं-हृदय मयगल-मदोन्मत्त लीलायमाण-लीलायुक्त वरंगंधहत्थि-श्रेष्ठगध- पत्थाण-गति जेवी छे पत्थिअं-गति जेनी हस्तीनी - संथवारिहं-स्तुति
___ एवा, हत्थि-हाथीनी __करवाने योग्य हत्थ-सूंढ बाहु-हाथ
धंत-धमेला कणग-सोनाना रुअग-घरेणा निरुवहय-स्वच्छ पिंजरं-देहवाळा पवर-श्रेष्ठ
लक्खण-लक्षणोवडे उवचिअ-व्याप्त सोम-सौम्य चारु-सुंदर रूवं-रूप सुइसुह-कानने सुख मणाभिराम-मनने परमरमणिञ्ज-अतिर- करनार आनंदकारी
मणीय देवदुंदुहि-देवदुंदुभिना निनाय-नाद करतां महुरयर-अत्यंत मधुर सुह-सुखकारक . गिरं-वाणी जेनी एवी
पण
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