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________________ ३१८ तिण समकित जा मलि नहु कोय, जिनवर वचन विमासी जोय; समकित लाधे दुर्गति टले, अनुक्रमे शीवपुर पदवी मीले॥५४॥ सूक्षम बादर उभय प्रकार, जे मुजने लाग्या अतिचार; कर जोडी मस्तक नामीये, आ भव परभव ते खामिये ॥ ५५ ॥ अहनिसि पक्वि चउमासी फुडं, संवच्छरी मिच्छादुक्कडं; अरिहंत सिझ सवे जाणजो, गुरुसाखे ते मुजने हजो ॥ ५६ ॥ समकितना पांच अतिचार तेहने विषे, जे कोइ पख्खी, चउमासो, संवच्छरी दिवसने विषे अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार लाग्यो होय ते सवि हुँ मन, वचन, कायाए करी तस्स मिच्छामि दुक्कडं. ते समकित ज्यांसुधी मलीन न थयुं होय त्यांसुधी कोइ पण जिनेश्वरना वचनमा विचार करी जोशो. समकित मळवाथी दुर्गतिनरक टळी जाय छे अने परंपराए मोक्ष मळे छे. ५४ सूक्षम अने बादर बे प्रकारमाथी जे कोइ अतिचार मने लाग्या होय तेनी बे हाथ जोडी आ भव अने परभव माटे हमेशा, पख्खी, चोमासी के संवत्सरीनी प्रगट रीते गुरु समीपे मिच्छामि दुक्कडं चाहुं छु. ते अरिहंत, सिद्ध सवे जाणजो. ५५-५६ . समकितनां पांच अतिचारो संबंधी जे कोइ दोष पाक्षिक, Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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