SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४ जिनधर्म भाखस्ये; आगम भाख्या द्रव्य जिणंद, ते प्रणमुं मन धरि आणंद ॥ ४० ॥ इम चउवीसी जे जिन यदा, एहीज चउवीसत्थो तदा; वंदनीक इम द्रव्य जिनेश, गुरु पूछी जाणो सुविशेष ॥ ४१ ॥ एणिपरे देवतत्त्व अरिहंत, गुरु सुसाधुजे जग गुणवंत; सूधो निरवद्य दे उपदेश, टाले सावद्यनो लवलेश ॥४२॥ परिग्रहने आरंभ निवार, वरते निरते पंचाचार; आणधर्मनो फेलावो करशे एमने आगममां द्रव्य जीनेश्वर कीयां छे, तेमने हुं मनना आनंदथी प्रणमु छु.॥४०॥ ____ए रीते जे चोवीशी अने जिनेश्वरो ज्यारे हशे, त्यारे एज चउविसत्थो चोवीश जिनवरनी स्तुति हशे, ए रीते द्रव्य जिनेश्वरो पण वंदन करवा योग्य छे. वधारे जाणवानी इच्छा होय तो गुरु महाराजने पूछो. ४१ ए रोते देवतत्त्व श्री अरिहंत अने जगतमां गुणे करी सुशोभित पवित्र साधु गुरु कयां छे. जेओ पाप व्यापार रहित शुद्ध उपदेश आपे छे अने लेश-जरापण सावध-पाप करता नथी-पापथी दूर रहे छे. ४२ ____ परिग्रह धन, धान्य विगेरे नव प्रकारना आरंभथी-दूर रहे छे अने पांच आचार पाळवामां हमेशा सावध-चतुर-निपुण, शुद्ध रहे छे अने जेओ आज्ञा अने क्रिया शुद्ध रीते पाळे छे तथा बेंताळीश दोष रहितः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy