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________________ ३१३ निक्षेपा अनुयोग दुवार; चिहुं प्रकार इणिपरे अरिहंत, चउथे भेद नमुं जयवंत ॥३७॥ चउवीसत्थो भणतां नाम, जिन नामे तसुकरुं प्रणाम; ठवणा श्री जिनप्रतिमा कही, जिनभावे ते बंदु सही ॥ ३८ ॥ पंचमझयण आवश्यकतणे, अधिकारे यति श्रावक भणे; पढम उवंगे दसमे अंग, प्रगट साखी जाणो मनरंग ॥ ३९ ॥ ___ आवंती चउवीसी हुस्ये, लहि केवल अनुयोगद्वारमा वर्णन कयु छे. अरिहंत भगवान चार प्रकारना छे अने चोथा भेदमां भाव तीर्थकर वर्णव्या छे, जे जयवंत छे, ए प्रमाणे तेमने हुँ नमस्कार करुं छु. ३७ लोगस्स-जेमां चोवीशे तीर्थकरनी स्तुति करी छे-ते नाम प्रमाणे चोवीशे तीर्थकरोने हुं प्रणाम-वंदन करूं अने श्री जिनप्रतिमानी स्थापनानेज भाव तीर्थकर मानी वंदना करुं छं. ३८ आवश्यक सूत्रनां पांचमां अध्ययनना अधिकारमा श्रावकने माटे कीधेल छे अने प्रथम उपांग-उववाइ सूत्रमा अने दशमे अंग प्रश्न व्याकरणमां प्रगट साक्षीए मनना उच्छरंगथी जाणो. ३९. आवती चोवीसीमां जीनेश्वर भगवान थशे, तेओ केवलज्ञान पामीने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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