SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१५ क्रिया जे पाले खरी,दोषरहित वहोरे गोचरी॥४३॥ इस्या सुगुरु गुरुतत्त्व सद्दहुं, तेनी आणा मस्तक वहु, जिनभाषित ते साचो धर्म, पालंतां आपे शिवशर्म ॥४४॥ सर्व जीव वलि हणवा नहि, इण उपदेशे धर्म हुवे सही; एक करि थापे आरंभ धर्म, ते जिनमतनुं न लहे मर्म ॥ ४५ ॥ धर्मारथ आरंभ मिथ्यात, एहवि वात करे विख्यात; बहुजन मांहे जे इम कहे, ते पण जैन धर्म नवि लहे ॥ ४६ ।। बेबे भाव जिहां ए (उन्नु दोषथी) मुक्त आहार ले छे. (जो इच्छा थाय तो एषणाशतकमां छे. त्यां जोइ लेवू ४३. . __ एवां सुगुरुथी गुरुतत्त्व जाणुं अने तेमनी आज्ञा मस्तकथी वहुं. जिनेश्वरदेवे कहेलोज धर्म साचो छे. जे पाळवाथी मोक्षसुख मळे छे.४४ जिनेश्वर प्ररूपित धर्मनी आज्ञा छे के सूक्षम या बादर कोइपण जीवने हणवो नहीं. एकांतथी जे कोइ धर्म आरंभने मानतो होय, ते जिनेश्वरना मतनो मर्म ( रहस्य ) नहीं जाणे. ४५ ___धर्म अने अर्थ माटे जे जे आरंभो करवा पडे अथवा तेवी वात करवी ते पण मिथ्यात्व छे. अने घणा लोकोनी सभामां आवी वात करे,. ते पण जैनधर्मने प्राप्त नहीं करी शके. ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy