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नाकं-स्वर्गने
शिवाय-मोक्षने माटे मातः-प्रभात समये
ते-ते संतु-थाओ
जिनेन्द्रा:-जिनेंद्रो __भावार्थ-जे जिनेश्वरोना जन्माभिषेकादिक कार्य करवाथी अत्यंत हर्षने लीवे मदोन्मत्त थयेला इन्द्रो पोताना स्वर्गना सुखने तृगसमान पण मानता नथी, ते जिनेश्वरो प्रातःकाळे कन्यागने माटे हो. २. मू-कलङ्कनिर्मुक्तममुक्तपूर्णतं, कुतर्कराहुग्रसनं सदोदयम् ।
अपूर्वचन्द्रं जिनचन्द्रभाषितं, दिनागमे नौमि बुधैर्नमस्कृतम् ॥ ३ ॥
शब्दार्थ:कलंक-कलंकथी
सदा-हमेशा निर्मुक्तं-रहित
अपूर्वचन्द्र-अपूर्व चन्द्ररूप अमुक्त-नथी मूकाणी
जिनचन्द्र-जिनचन्द्रना पूर्णतं-पूर्णता
भाषितं-आगमने कुतर्क-कुतर्कवाद
दिनागमे-प्रभात समये राहु-राहुने
नौमि-हुं नमस्कार करूं छु आसनं-भक्षण करनार
बुधैः-पंडितो वडे उदयं-उदय पामेला
नमस्कृतं-नमस्कार करायेला भावार्थ-पंडितोए नमस्कार करेल, जिनचंद्र प्ररूपेलं, आगम अपूर्व एटले अलौकिक चंद्र समान छे, केमके लौकिक चंद्र के जे
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