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________________ २४९ ; आकाशमा देखाय छे ते कलंकसहित छे अने आ आगमरूपी चंद्र तेथी रहित छे, लौकिक चंद्र पूर्णतारहित छे अने आ आगमरूपी चंद्र पूर्णतासहित छे, लौकिक चन्द्रनो राहु ग्रास करे छे पण आ आगमरूपी चन्द्रने कुतर्करूपी राहु ग्रास करी शकतो नथी, तथा लौकिक चन्द्र हमेशां उदय पामतो नथी अने आ आगमरूपी चन्द्र तो निरंतर उदय पामेलोज छे, आबा अलौकिक आगमचन्दनी हुं प्रातःकाळे स्तुति करूं छं. ३. पछी उभा थइ वर्तमानजिन स्तुति करवी. ॥ श्री वर्त्तमान जिनस्तुति ॥ स्वामी वंदु विहरमाण, जिनवर सीमंधर, सीमनाम मर्याद, धर्मनी तास धुरंधर; युगमंधर आधार, त्रिजगे नमुं भवसिंधुर, बाहु सुबाहु जिणिंद, नमुं महिमागुणसुंदर ॥ १ ॥ अर्थ- विचरता एवा श्री सीमंधरस्वामी जिनवर ते प्रते हुं वंदन करूं कुं. धर्मनी जे मर्यादा- हद तेमां धुरंधर अग्रेसर एवा सार्थक नामचाला युगमंधर नामे भगवान, संसाररूप जे समुद्र तेमां पडता त्रणे जगतना (प्राणीयोने) आधार रूप तेने नमुं लुं. महिमा अने गुणो ए करी सुंदर एवा बाहु ने सुबाहुनामना जिनेन्द्रने हुं नमुं कुं. १. जंबुदीवि चत्तारि जिण, विजयवंत विहरंत; क्षेत्रविदेहे तमतिमिर, दिनयर जेम हरंत ॥ २॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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