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________________ २४६ गामतणे पइसारणे, गुरु गौतम समरंत ॥ इच्छाभोजन घर कुशल, लच्छी लील करंत ॥ ४ ॥ अर्थ - - अने गामनी अंदर पेसती बखते जो गौतमस्वामी (गुरु) नुं नाम संभारीये तो इच्छा प्रमाणे भोजननी प्राप्ति थाय, वळी घरनी अंदर क्षेमकुशलता वाधे अने लक्ष्मी तेना घरने विषे लीला करे. ॥ ४ ॥ पुंडरिक गौतम पमुह, गणधर गुण संपन्न || ग्रह उठी नित प्रणमिये, चउदहसय बावन्न ॥ ५ ॥ अर्थ -- प्रथम पुंडरिक नामना गणधर अने छेल्ला गौतम गणधर ए आदि चउदसें बाचन गणधरो छे. ते गुण संपन्न छे. तेमने प्रभातम उठीने नित्य समरीये ॥ ५ ॥ सुरगो-तरू - मणि संपजे, जेहने लीधे नाम ॥ एहीज अक्षर समरतां, सीझे वंछीत काम ॥ ६॥ अर्थ - - जेमनुं नाम लेवाथी कामधेनु अने कल्पवृक्ष अने मणि तेमनी प्राप्ति थाय, एज अक्षरने संभारतां थका तमाम मनवांछित कार्य सिद्ध थाय ॥ ६ ॥ पछी उभा थह पञ्चख्खाण करवुं ( सामाइक, चोवीसत्थो, वांदणां, पडिक्कमणुं, काउस्सग्ग, पच्चखाण कयुँ छेजी. ) पछी बेसी "इच्छामोऽणुसट्ठि नमो खमासमणाणं" कहीने चैत्यवंदन कर ॥ ॥ ३८ अथ विशाललोचनदलं चैत्यवंदनX | X प्रभात समये राइप्रतिक्रमणना छ आवश्यक पछी आ स्तुति बोलाय छे, माटे प्राभातिक वीरस्तुति पण कहेवाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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