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________________ २४५ भरतेसर नरवर पमुह, करावी मनभाव || ते जिन प्रतिमा वदतां दुरे दुरित पलाय ॥ ११ ॥ अर्थ - - भरत महाराजा विगेरेओए मनना भावे जे जिन प्रतिमाओ करावी छे, ते प्रतिमाओने वंदन करता था दूर थकी पापो नाश पामे छे. ॥ ११ ॥ मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमप्रभुः ॥ मंगलं स्थूलभद्राद्या- जनो धर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ १ ॥ अर्थ - वीर भगवान मंगलकारी छे अने गौतमस्वामी ( गणधर ) पण मंगलकारी छे, अने स्थुलिभद्र बिगेरे महात्माओ थइ गया, ते पण मंगलकारी छे अने जैनधर्म छे, ते पण मंगलकारी छे, ते सर्व मने मंगल करनारा थाओ. ॥ १ ॥ सर्वारिष्टणासाय, सर्वाभिष्टार्थदायिने ॥ सर्वलब्धि निधानाय, गौतमस्वामिने नमः ॥ २ ॥ अर्थ- सर्व पापने नाश करनार एवा अने सर्व इच्छित अर्थने आपनारा अने सर्व लब्धि (सिद्धि) ना भंडार एवा गौतमस्वामीने नमस्कार हो ॥ २ ॥ अंगुठे अमृत वसे, लब्धितणो भंडार ॥ जो गुरु गौतम समरिये, मनवंछित दातार ॥ ३ ॥ अर्थ - - जेना अंगुठाने विषे अमृत वसे छे अने जे लब्धिओना भंडाररूप छे; अने मनोवांछितने आपनार एवा गौतमस्वामीने जो समरीये, तो मनवांछित पूरण थाय छे. ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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