________________
२४४
अर्थ-जेनो आदि नथी अने अंत नथी ते शाश्वती प्रतिमा गणाय अने ते प्रतिमाओना आधारथी आ मनुष्यलोक-अढी द्वीपनी अंदर प्रतिमाओ थाय छे. ॥ ७ ॥ नर नरपति जे कारवी, असासती ते जाण ॥ जे हुवा जे हुवे जे हुस्ये, जिणवर गुणमणि खाण ॥ ८॥
अर्थ-अने जे मनुष्योए अथवा मनुष्योना राजाओए, जे प्रतिमाओने अहीं करावी छे, ते अशाश्वती प्रतिमाओ छे. जे आगळ थइ गया ने वर्तमानमा छ; अने भविष्यमां थशे तेओनी ते प्रतिमाओ, गुणरूप रत्नना खाणरूप, एवा तीर्थकरोनी छे. ॥ ८ ॥ अष्टापद समेतशिखर, शत्रुजय गिरिनार ॥ अर्बुद गामागर नगर, जिह जिह जिनह विहार ॥९॥
अर्थ-हवे अशाश्वती प्रतिमा क्यां छे तेना तीर्थोना स्थळो बतावे छे. १. अष्टापद, २. समेतशिखर, ३. शत्रुजय, ४. गिरिनार, ५. आबुजी, ए पर्वतो उपर अने गामने विषे अने आकर (खाण) ने विषे अने नगरने विषे वळी ज्या ज्यां जिनेश्वर महाराजाना मंदिरो-देरासरो छे तेमने मारो नमस्कार हो. ॥ ९ ॥ जिह मुनिवर अणसण करी, मुक्ति गया जिणठाम ॥ सिद्धक्षेत्र तमु दसणे, शुभफल शुभपरिणाम ॥ १० ॥ ___अर्थ-अने मुनीश्वरोए ज्यां अणसण करीने मुक्तिमां गया ते स्थानको पण सिद्धक्षेत्र गणाय अने तेओना दर्शनथी ते भूमि स्पर्शथी शुभ फळ थाय अने शुभ परिणाम वधे ॥ १० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org