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समए-शास्त्रमा
सेवा-सेवा तहवि-तो पण
भवे भवे-भवोभवने विषे मम-मने
तुम्ह-तमारा हुज्ज-होजो
चलणाणं-चरणनी भावार्थ-हे वीतराग प्रभु ! जो के तमारा शासनमा नियाj. करवानी ना कही छे एटले के काई पण शुभ अनुष्ठान कयु होय ते बदल अमुक फळ मागवू तेनुं नाम निया' कहेवाय छे. तेनो शास्त्रमा निषेध कर्यो छे, तोपण हुं तो याचना करुं छं के मारे भवभवने विषे .. एटले दरेक जन्ममा तमारा चरणनी सेवा होजो, ३. , - वळी बीजी योजनाओ आ प्रमाणे करे छेमू-दुक्खखओ कम्मखओ, समाहिमरणं च बोहिलाभोय। संपजउ मह एअं, तुह नाह! पणामकरणेणं ॥४॥
शब्दार्थःदुक्खखओ-दुःखनो
मह-मने कम्मखओ-कर्मनो क्षय । एअं-ए समाहि-समाधि
तुह-तमने मरणं-मरण बोहि-समकितनो
नाह-हे नाथ ! लाभो य-लाभ
पणाम-प्रणाम संपज्जउ-प्राप्त थाओ
करणेणं-करवाथी
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