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(वसन्ततिलकावृत्तम् ।) ५०-जाईजरामरणसोगपणासणस्स,
कल्लाणपुक्खलविसालमुहावहस्स । को देवदाणवनरिंदगणच्चिअस्स,
धम्मस्स सारमुवलब्भ करे पमायं ॥३॥
शब्दार्थः
जाइ-जन्म जरा-घडपण भरण-मरण सोग-शोकनो पणासणस्स-नाश करनार कल्लाण-कल्याणकारी पुक्खल-संपूर्ण विसाल-विशाळ सुह-मोक्ष सुखने आवहस्स-आपनार
को-कोण देव-देवता दाणव-दानव नरिंद-चक्रवर्तिना गण-समूह अच्चिअस्स-पूजायेल धम्मस्स-श्रुत धर्मना सारं-तत्वने ... उपलब्भ-पामीने करे पमाय-प्रमाद करे ?
भावार्थ-जन्म, जरा-बृद्धावस्था, मृत्यु अने शोकने नाश करनार, कल्याणकारक अने अत्यंत विशाळ सुख, जे मोक्ष, तेने आपनार तथा देवेंद्रो, असुरेंद्रो अने नरेंद्रोए पूजेला एवा श्रुतधर्मना सारने
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