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________________ १७१ अग्यारमा व्रतना अतिचार मू० - संथारुच्चारविही - पमाय तह चेव भोअणाभोए । पोसहविहिविवरीए, तइए सिक्खावए निंदे || २९ ॥ संथार - संथारा संबंधी उच्चारविही-लघुनीति तथा वडीनीति संबंधी पमाय - प्रमाद (आळस ) तह - तेम चेव-चळी भोयण - भोजन संबंधी आभोए - चिंता करवी पोसह विहि- पौषध विधि विवरी - विपरीत करवाथी Jain Education International तइए - त्रीजा सिक्खावए - शिक्षात्रतने विषे भावार्थः – श्रावकनुं अग्यारमुं व्रत पोषधोपवास नामनुं त्रीजुं शिक्षात्रत छे. तेमां पोषं - धर्मनी पुष्टिने धत्ते-जे धारण करे ते पोषध कहे-वाय छे एटले अष्टमी अने चतुर्दशी आदि पर्वति थिए अवश्य करवा लायक व्रत विशेष, तेणे करीने उपवसनं - रहेवुं, ते पोषधोपवास कहेवाय छे. अथवा पौषध एटले अष्टमी आदिक पर्व तिथि, तेने विषे जे उपवास करवो ते पण पौषधोपवास कहेवाय छे. आ प्रमाणे शब्दार्थ छे, तो पण प्रवृत्ति एवीछे के आ व्रतमां आहार, शरीरसत्कार, मैथुन अने सावद्यव्यापार ए चार वर्जवाना छे. तेमां पण चालती आचार्य परंपराए करीने अने विशेष सामाचारीए करीने हालमां आहार पौषध सर्वथी अने देशथी थइ शके छे एटले के उपवास के एकास आदिक करी शकाय * भोइ णाभोए - ( भवत्यनाभोगः ) इति पाठान्तरम्. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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