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________________ .१७२ छे, परंतु शरीरसत्कार, मैथुन अने व्यापारनो तो सर्वथा त्याग करवामां आवे छे. तेना पांच अतिचारो आ प्रमाणे छे. संथारो अने वसति आदिक चक्षुथी नहीं जोये छते अथवा बराबर सारी रीते नहीं जोये सते अप्रतिलेखितदुष्प्रतिलेखितशय्यासंस्तारक नामनो पहेलो अतिचार थाय छे. १. ए ज रीते संथारो, वसति आदिकने रजोहरणादिके करीने प्रमार्जन नहीं करे छते अथवा बराबर प्रमार्जन नही करे सते अप्रमार्जितदुष्प्रमार्जितशय्यासंस्तारक नामनो बीजो अतिचार थाय छे. २. एज रोते उच्चार प्रस्रवण-वडीनीति लधुनीति 'परठवधानी भूमिने चक्षुथी नहीं जोये छते अथवा बराबर नहीं जोये छते अप्रतिलेखितदुष्प्रतिलेखितउच्चारप्रश्रवणभूमिक नामनो त्रीजो अतिचार थाय छे. ३. ए ज रोते ते भूमिने रजोहरणादिकबडे प्रमार्जन नहीं करे सते अथवा बराबर प्रमार्जन नहीं करे छते अप्रमार्जितदुष्प्रमार्जितउच्चारप्रस्रवणभूमिक नामनो चोथो अतिचार थाय छे. ४. तथा भोजनने विषे अने उपलक्षणथी शरीरसत्कार विगेरे विषे चिंता थाय के क्यारे पौषध पूर्ण थाय अने क्यारे स्वेच्छाथी भोजनादिक करुं इत्यादिक विचार करवाथी पौषधोपवासनुं सम्यक्अननुपालन नामनो पांचमो अतिचार थाय छे. ५. अहीं 'भोअणाभोए' ने बदले ‘भोइऽगाभोए' एवं पाठांतर पण छे, ते लइए तो उपरना पहेला चार अतिचारो ' अनाभोग एटले अनुपयोगपणुं सते थाय छे' एवो अर्थ करवो अने तेने बदले पौषधविधिनुं विपरीतपणुं एटले पौषध व्रत लीधा पछी क्षुधा, ताप विगेरेना दुःखथी ' हुं पौषध पूर्ण थये स्वेच्छाथी आहारादिक करीश.' इत्यादिक विचारी सम्यक् प्रकारे पौषध विधिनु पालन करे नहीं ए पांचमो अतिचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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