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________________ १४५ ___ लखवो ते कूटलेख नामनो पांचमो अतिचार कहेवाय छे.+५. १२. . हवे त्रीजुं व्रत कहे छेमू०-तइए अणुव्वयम्मि, थूलगपरदबहरणविरईओ। आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगणं ॥१३॥ शब्दार्थतइए-त्रीजा परदच-पारका धननी अणुव्वयंमि-अणुव्रतने विषे । हरण-हरणनी थूलग-मोटा विरइओ-विरतिथी भावार्थ-त्रीजें व्रत अदत्तादान नामनु छे. तेमां स्वामी अदत्त १, जीव अदत्त २, तीर्थकर अदत्त ३ अने गुरु अदत्त ४ एम चार प्रकारे अदत्त कहेवाय छे. तेमां जे सुवर्णादिक वस्तु तेना स्वा. मीए आपी न होय ते स्वामी अदत्त कहेवाय छे १, जे पोतानी मालीकीनी फळ विगेरे सचित्त वस्तु भांगवी के खावी ते जोव अदत्त कहेवाय छे + अहीं कोई शंका करे के-कूटलेख तो स्थूळ-मोटुं असत्य छे, माटे ते करवाथी तो भंग न थवो जोइए. अतिचार न होवो जोइए. आनो उत्तर ए छे जे-आ शंका सत्य छे, अमुक अपेक्षाए भंग करी शकाय छे. परंतु कोइ व्रती एम धारे के में तो असत्य वचन बोलवान प्रत्याख्यान कयु छ, अने आ तो बोलवान नथी, लखवानुं छे, आवी अपेक्षाथी ते मुग्ध बुद्धिवाळाने अतिचार लागे छे......... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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