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________________ १४० भावार्थ - अहीं बीजुं अणुव्रत स्थूळ मृषावाद विरमण नामनुं छे. ते स्थूळ मृषावाद पांच प्रकारे छे. तेमां द्वेषादिकवडे अविषकन्याने विषकन्या कहेवी के विष कन्याने अविषकन्या कहेवी, सुशीलने दुःशील अने दुःशीलने सुशील कहेवी ते कन्यालीक कहेवाय छे. १. थोडा दूधवाळी गायविगेरेने घणा दूधवाळी कहेवी अने घणा दूधवाळीने थोडा दूधवाळी इत्यादिक कहेवुं ते गवालीक. २. पोतानी भूमिने परनी कहेवी, के परनी भूमिने पोतानी कहेवी तथा उखर भूमिने सारी कहेवी के सारीने उखर कहेवी इत्यादिक भूम्यलीक. ३. धनादिक कोहनी थापणने -असत्य बोली ओळववी ते न्यासापहार. ४. तथा कोइनी खोटी साक्षी पूरवी ते कूटसाक्षित्व कहेवाय छे. ५. आ पांच प्रकारना अलीकविरमण तने विषे प्रमादी अप्रशस्तभावमां वर्तना थका में जे कांइ विरुद्धआचरण कर्य होय. ११. मू० - सहसारहस्सदारे, मोसुवएसे अ कूडले हे अ । बीयवयस्सइआरे, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ॥ १२ ॥ शब्दार्थ: - सहसा - नगर विचार्ये रहस्स- एकांतमां दारे - बीए कहेली Jain Education International मोस - जुठो उवएसे - उपदेश करवो कूडले अ - जुठा दस्तावेज लखवा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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