________________
१३९
तिपातनी ज विरति करे छे. तेथी श्रावकने दश वसा दया रही. स्थूळ जीवोमां पण चोरादिक अपराधी जीवोनी हिंसानो त्याग करी शकतो नथी, तेथी तेने निरपराधी त्रस जीवोनी हिंसानो निषेध होय छे, माटेपांच वसा दया रही. निरपराधी जीवोनी हिंसा पण संकल्पथी अने आरंभी एम वे प्रकारनी होय छे, तेमां आरंभथी हिंसा तो खेती आदिक धंधामां थइ जाय छे, माटे अमुक कार्यने माटे हुं आ जीवनी हिंसा करूं छं एवा संकल्पथी तेने हिंसानी विरति होय छे, तेथी अढी वसा दया रही. संकल्पथी हिंसा पण सापेक्ष अने निरपेक्ष एम बे प्रकारनी होय छे, तेमां पुत्र, भृत्य, बळद, अश्व विगेरेने शीखववानी खातर अपेक्षाथी कांइक हिंसा करवी पडे छे, माटे तेने निरपेक्षथी हिंसानी विरति होय छे, तेथी सवा वसा दया श्रावकने होइ शके छे.. अर्थात् निरपेक्षपणे संकल्पथी निरपराधी त्रस जीवोनी हुं हिंसा नहीं करूं एवं व्रत श्रावकने होय छे.
हवे बीजा व्रतना अतिचार आलोवे छेमू० – बीए अणुव्वयम्मि, परिधूलगअलियवयणविरईओ । आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्प संगेणं ॥ ११ ॥
शब्दार्थः
बीए-बीजा अणुव्वयम्मि - अणुव्रतमां परि-अतिशय
Jain Education International
| धूलग- मोटा
अलिय-जुट्ठा
वयण-वचन
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org