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________________ कुंथुनाथ भगवान आ जगतमां छद्रा चक्रवर्ती छे अने सत्तरमा धर्म चक्रवर्ती छे. अढारमा श्री अरजिनवरना चरणनी आगल सेवा करवाथी शिवपदना सुखो मळे छे. ॥ ३ ॥ मू०-मल्लिनाथ दुय मल्ल दुज्जय, अंतरना जीत्या मुनिसुव्रत व्रत सुष्टु धरी, लोकाग्रे पहुता नमी नामी रतिपतिय मान, रिपु सर्व खपाव्या नेमि जिणेसर ब्रह्मकवच, पहेरि गिरि आव्या श्रीपार्श्वनाथ त्रेवीसमो, त्रिभुवन सकल सरूप श्रीमहावीर तीर्थेसरु, नमिये विविध सरूप ॥४॥ भावार्थ:-आत्मानी साथे लागेला दुर्जय एवा राग अने द्वेष रूप बे मल्लोने ओगणीशमा तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ भगवाने सहजमां जीती लीघा छे, उच्चमा उच्च व्रत धारण करी वीशमा मुनिसुव्रतस्वामी लोकना अग्रभागने विषे पहोच्या-मोक्षपद पाम्या छे. एकवीपमा श्री नमीनाथे अजेय एवा कामदेवना मानने नमावी अंतर्गत सर्व शत्रुओने खपाच्या छे. बावीसमा श्री नेमिजिनेश्वर ब्रह्मचर्यरूप बख्तरने पहेरीने गिरनार पर्वत उपर बीराज्या-आब्या छे. त्रेवीसमा श्री पार्श्वनाथस्वामी त्रिभुवनना समग्र स्वरूपने जाणनारा छे. चोवीशमा विविध स्वरूपवाळा तीर्थना स्वामी श्री महावीरस्वामीने नमस्कार करीए ॥ ५ ॥ मू-एणीपरे जिण चोवीस थव्या, पुरुषोत्तम सिद्धा सेव करी एक चित्त जेणे, ते साथे लीधा यद्यपि जिणवर रागरहित, पण सेवकने तारे द्वेष तज्यो पण अवर लोगमुं संग निवारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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