SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९३ तिण कारण मगते भणिय, बंदु देव त्रिकाल प्रभु तुठे वंछित फले, जाणे बाल गोपाल ॥५॥ भावार्थ:- एवी रीते पुरुषोत्तम - पुरुषोमां उत्तम तथा सिद्ध थयेला चोवीस जिनो में स्तत्र्या, तथा एकचित्ते जेमणे सेवा करी तेओने पोतानी साथे लीधा, जो के जिनेश्वर भगवंतो राग-द्वेष आदि दूषणोथी रहित छे छतां पण पोताना सेवकने तारे छे. द्वेषने छोडीने पण बीजा लोकोनी साथे जेणे संग निवार्यो छे - अर्थात् संगरहित छे. ते कारणथी हुं भक्तिपूर्वक आ स्तुति करवापूर्वक देवताने त्रणे काळ स्तनुं बुं-वांदु छं. कारण प्रसन्न थयेला सामान्य देवताओ पण आ फलने आपनारा छे, ज्यारे जिनेश्वर परमात्मा तो देवना पण देव छे तो पछी तेवा अलौकिक देवने भवाथी निष्फल केम थवाय अर्थात् अवश्य फळ मळेज छे.. आ वात प्रसिद्ध छे अर्थात् बाळकथी लइ पुरुष पर्यन्त जाणे छे ॥ ५ ॥ LOREE CALA ॥ १३ अथ जं किंचिं सूत्र ॥ हवे सामान्य ते सर्व जिनबिंबोने वांदे छे— मू० - जं किंचि नामतित्थं, सग्गे पायालि - तिरिय- लोयमि । जाई जिबिंबाई, ताई सव्वाई वंदामि ||१|| शब्दार्थ. जं - जे किंचि - कोइ नाम तित्थं नाम मात्रथी पण Jain Education International प्रसिद्ध ऐवं तीर्थ अने ते 4 विषे सग्गे स्वर्गमां For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy