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आचार्य श्रीमत् श्री समरचन्द्र सूरिजीनी बनावेली पांच गाथावाळी ॥। १२ अथ सिरि रिसहेसरनी थूइ || ( छप्पय छंद )
मू० - सिरिरिसहेसर गुणनिधान, सेवक सुखदायक अजिते जीत्या कर्म सबल, हुवा जगनायक संभव भवना भय हरेवि, पाम्या शिवराज अभिनंदन जिन मुझ मिल्या, सिद्धा सवि काज सुमति सुमति दायक जिनह, सुरनर सारे सेव पद्मप्रभ जिनदंसणे, जनम मरण संखेव ॥ १ ॥ भावार्थ:- पहेला श्री ऋषभदेव स्वामी गुणोना भंडार छे अने
सेवक सुखना आपनारा छे, बीजा श्री अजितनाथ
श्री संभवनाथ
जेओ महा बळवान होवाथी कठीन एवां शक्या अने तेथी करीने जगतना नायक भगवान के जेओए पोताना भव-संसारना जे भय तेने दूर करी - तेनो विनाश करी मोक्षना राज्यने पाम्या, चोथा श्री अभिनंदन स्वामी मने मळ्यां जेथी मारां बधां कामो सिद्ध थयां सारी बुद्धिने आपनारा पांचमा श्री सुमतिनाथ भगवान छे के जेओनी देव अने मनुष्य सेवा करे छे, छट्टा श्री पद्मप्रभ प्रभु छे जेओना दर्शनथीज जन्म-वृद्धावस्था मरण आत्रणे टळी जाय छे. ॥ १ ॥
मू० - श्री सुपास मुज पूरे आश, भवना दुःख वारी, चंद्रप्रभ जिनतणी, कान्ति देखत मनहारी, सुविधि सुविधिपर धर्म कह्यो, तिहुयण जणसाखी,
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कर्माने पण थया. त्रीजा
भगवान छे के
सहेजमां जीती
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