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भावार्थ:-आपना सामीप्यपणाथी शोकरहित थतुं अशोक वृक्ष आपनी उपर छाया करतुं साथे चाले छे, इंद्रध्वज पण आपना आगमननी सूचना आपवाज जाणे आगल चालती होय नहीं तेवी रीते शोभे छे, आपनी विधमानताने सूचवतो धर्मध्वज पण आकाशमा प्रकाश फेंके छे, प्रत्येक प्राणीना कानमा मंगलिक ध्वनि फेंकतो देवतानो दुंदुभिनो शब्द पण वागे छे, वर्षाऋतुना मेघनी गंभीरतावाळी श्री अरिहंत परमात्मानी वाणी गाजे छे, तथा एक योजन सुधी तथा प्रत्येक प्राणीने पोतपोतानी भाषामां संभळाय तेवो परमात्मानी वाणी छे अने अमृत जेवी उपमावाळी तथा सर्व भाषाने मळती छे.
मू-सकल लोकना संशय हरे,
त्रिभुवनजनना मनने करे उत्साह, मुक्तिनगरी प्रते सार्थवाह,
मावार्थ:-सर्व लोकना संशयने हणनारा, त्रण भुवननी अंदर रहेनारा जनोना मनने उत्साह करनारा, तथा सार्थवाहनी जेम मुक्तिपथे लइ जनारा.
एहवा श्रीअरिहंत भगवंत गुणवंत देवाधिदेव, तेहनी गुणस्तुति भ[:
__ (एम बोली उभा थइ थूइ भणवी)
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