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मू० - निरीह निरहंकार निस्संग निर्मम शान्त दान्त करुणासमुद्र विश्वोपकारसागर अनंतगुणना आगर चउसठ इंद्रना पूजनीक
शब्दार्थः
निरीह - जेओने कोइ जातनी इच्छा नयी
निरहंकार - अने तेटला माटेज अभिमान वगरना
निस्संग - माटेज सर्व प्रकारना संबंध रहित
निर्मम - सर्व प्रकारनी आसक्तिथी रहित
शान्त - मनना विकारो रहित शान्त स्वभावो
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दान्त - इन्द्रियोनुं दमन करनारा
करुणा समुद्र - दयाना एक सागर
एवा
विश्वोपकारसागर - समुद्रनी जेम जगतमां
उपकार
करनारा
अनंतगुणना आगर - समस्त गुणोनी खाण जेवा
चउसठ इंद्रना पूजनीक - चोसठ इन्द्रथी पूजायेला
भावार्थ —– जेओने कोइ जातनी इच्छा नथी, अने तेटला माटे अभिमान वगरना, तथा सर्वप्रकारना संबंधरहित, ममत्व - मारापणाथी रहित, मनना विकारोने जीतवाथी शान्त बनेला, इंद्रियोने काबूमां राखनारा, प्रत्येक जीव उपर दयाभाव वरसावनारा होवाथी करुणाना समुद्र जेवा, समुद्र जेम रत्न- आदि आपीने उपकार करे छे ते प्रमाणे
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