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________________ मू-एहवा देवाधिदेव सुरासुरविहितसेव सर्वज्ञ भगवन्त जगन्नाथ जगजीवना तारक कुगतिमार्ग निवारक शब्दार्थ:एहवा-एवा, उपर वर्णवेला भगवन्त-सर्व शक्तिवाळा देवाधिदेव-देवना पण देव परमात्मा सुर-देवता जगन्नाथ-त्रण जगतना नाथ - योग अने क्षेमने करनारा असुर-असुरदेव जगजीवना-दुनियामा रहेला विहित-करी छे प्राणीओने सेव-सेवा-भक्ति तारक-तारवावाळा सर्वज्ञ-सर्व पदार्थाने तथा भावोने । कुगतिमार्ग-कुगतिमार्गने संपूर्ण रोते जाणनारा निवारक-अटकाववावाळां भावार्थ-बीजी गाथामां वर्णव्या प्रमाणे जेओ देवोना पण देव छे, सुर अने असुर पण जे परमात्मानी भक्ति करे छे, तथा जेओ सर्व वस्तु तथा सर्व प्रकारना भावोने संपूर्ण रीते जाणे छे, सर्व प्रकारचें ज्ञान होवाथी शक्तिवाळा छे, स्वर्ग, मृत्यु अने तिर्छा ए त्रणे लोकना स्वामी छे अने तेथी करीने सर्वनुं योग-क्षेम-रक्षण करनारा छे, त्रण जगतमां रहेला प्राणी मात्रना जेओ तारणहार छे, अने कुगतिनो पोते अंत-पार पामेला होवाथी तेनाथी अटकाववा जेओ समर्थ छे. तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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