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( ε )
जप अंगुलियों पर या माला के द्वारा किया जा सकता है। यदि अंगुलियों पर जप करना हो, तो दांये हाथ की चार अंगुलियों के बारह पोरुओं पर सबसे छोटी अंगुली के क्रम से नवकार मन्त्र पढ़ - पढ़कर अंगूठा रखते जाएँ । जब इस प्रकार बारह बार नवकार मन्त्र का जाप हो जाए तो बायें हाथ के अंगूठे को बायें हाथ की ही सबसे छोटी एक अंगुली के एक पोरुए पर रक्खें । इस प्रकार जब बायें हाथ की तीन अंगुलियों के नौ पोरुए पर अंगूठा पहुंच जाए तो १०८ मंत्र का जप पूरा हो जायगा ।
करना हो, तो माला को
यदि माला पर जप दाहिने हाथ में लेकर अंगूठे और मध्यम. ( बीच की ) अंगूली से मनकों को नवकार मन्त्र पढ़ पढ़कर सरकाते एँ । इस प्रकार मनकों को एक- एक सरकाते हुए जब एक सौ आठ मनके पूरे हो जाएँ तो एक जप हो गया समझना चाहिए । यदि दूसरी माला फेरनी हो तो फिर वापस माला बदल कर जप करना चाहिए ।
माला काठ के मनकों की या सूत की बनाई जाती है । माला को जहाँ - तहाँ जमीन पर नहीं पटक देना चाहिए । एकान्त
शुद्ध
स्थान पर रखना
चाहिए ।
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