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________________ १. एक वह, जो संसार से लेता ही रहता है, देता कुछ नहीं। २. दूसरा वह, जो जितना लेता है, उतना देता भी रहता है। ३. तीसरा वह, जो लेता है उससे ज्यादा देता है। ४. चौथा वह, जो लेता कुछ नहीं, देता ही देता है। अपना समस्त जीवन संसार की सेवा में अर्पित कर देता है। अध्यात्म के क्षेत्र में व्यक्ति का कोई महत्त्व नहीं है, चाहे वह किसी नामरूप में हो। वहाँ महत्त्व है केवल धर्म का, सिर्फ सदाचरण का। __तथागत बुद्ध अपने व्यक्तित्व की अपेक्षा धर्म को अधिक महत्त्व देते थे। यह बात भिक्षु वक्कलि और उनके बीच हुए संवाद से प्रकट होती है । भिक्षु वक्कलि जब एक बार बीमार पड़े तो उन्होंने भगवान बुद्ध के दर्शन की इच्छा प्रकट की। भिक्षु की इच्छा को पूर्ण करने के लिए तथागत स्वयं उनके पास गए और धर्मोपदेश दिया-“वक्कलि ! मेरी इस गंदी काया को देखने में तुझे क्या लाभ है ? वक्कलि ! जो धर्म को देखता है, वह मुझे देखता है, जो मुझे देखता है वह धर्म को देखता है।" वक्कलि को सम्बोधित करके दिया गया यह उपदेश, हमें धर्म की सर्वोच्च सत्ता की ओर देखने का इंगित करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिष्ठा का देवता सूर्य है। जिसका सूर्य ग्रह बलवान होता है वह प्रतिष्ठित और प्रभावशाली होता है। जीवन शास्त्र के अनुसार यदि इसकी व्याख्या करें तो यों कर सकते हैं कि प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए प्रतापवान बनो, सूर्य की तरह अकेला चलना सीखो, और विपत्तियों के अन्धकार के साथ संघर्षरत रहो ! SC अमर डायरी 89 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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