SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आकाश के चंचल नक्षत्रों और जमीन के अन्तस्तल की हलचलों को देखने वाला आज का विज्ञान प्रेमी मानव, अपने पड़ौसी की गिरती हुई झोंपड़ी को नहीं देख पा रहा है। इससे बढ़कर विज्ञान की क्या विडम्बना हो सकती है ?” * * * पहाड़ की गहरी कन्दरा में गुलाब का एक फूल खिला हुआ था । मैंने पूछा – “फूल ! तू यहाँ किसलिए महक रहा है ? यहाँ पर न कोई तुम्हारी सुकुमार सुषमा को देखकर उल्लसित होने वाला है, और न मधुर परिमल एवं पराग का आस्वाद लेकर कोई वाह ! वाह ! ! कहने वाला ही है ।” फूल ने उत्तर दिया – “मैं इसलिए नहीं महकता कि मुझे कोई देखे, या सुगन्ध लेकर वाह ! वाह ! ! कहे । मेरा तो अपना सहज स्वभाव ही है- खिलना, महकना, सौरभ बिखेरना !” मैंने सोचा, क्या हमारा जीवन भी कभी इस सिद्धान्त से कृतार्थ होगा ? * * सन्त से पूछा, किसी ने– “तुम्हारा शास्त्र क्या है ? किस भाषा में है ?" और अनुयायी कौन है ? सन्त ने उत्तर दिया- “ चिन्तन और विचार मेरा शास्त्र है। आचार उसकी भाषा है । उसको पढ़े और उस पर चले वही मेरा अनुयायी है।” * वीरता और कायरता में क्या भेद है ? एक कदम का ! जहाँ वीर का कदम सदा आगे की ओर बढ़ता है, वहाँ कायर का कदम पीछे की ओर मुड़ता है I वीर मरकर अपने पीछे आदर्श का उज्ज्वल प्रकाश छोड़ जाता है लेकिन कायर कुत्ते की मौत मरता है और अपने पीछे छोड़ जाता है अन्धकार, केवल अन्धकार ! संसार में मनुष्यों की कितनी जातियाँ हैं ? न अनन्त ! न असंख्य ! न हजारों और न सैकड़ों ! सिर्फ चार जाति के मनुष्य इस संसार में निवास करते हैं । 88 Jain Education International For Private & Personal Use Only अमर डायरी www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy