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स्नान करने वाले भक्तों ने बड़े अचरज से पूछा कि--गुरु ! यह क्या कर रहे हैं ? नानक देव ने, हाथों से पानी फेंकना चालू रखते हुए उत्तर दिया कि मैं अपने खेतों को पानी दे रहा हूँ, जो कि यहाँ से कुछ ही दूर पश्चिम में हैं।
गंगा-भक्तों ने तीखे स्वर में कहा—यह कैसे संभव हो.सकता है?
नानक देव ने कहा-जब तुम्हारे द्वारा दिया गया पानी यहाँ से लाखों कोस दूर मृत पूर्वजों तक पहुँच सकता है, तब मेरा पानी यहाँ से कुछ ही दूर स्थित अपने खेतों तक क्यों नहीं पहुँच सकता? ___ भक्त लोग चुप थे ! गुरु ने एक मार्मिक दृष्टि से देखा तुम्हारे पितर इस पानी की अञ्जलि से तृप्त नहीं हो सकेंगे। उनकी तृप्ति के लिए सत्कर्म की अञ्जलि दो, सेवा और प्रेम की अञ्जलि दो।
तुम भले ही आकाश में रहने वाले उस ईश्वर की सत्ता से इन्कार कर सकते हो, मगर उस ईश्वर की सत्ता से इन्कार नहीं कर सकते, जो जीवन के कण-कण में समाया हुआ है !
बात उस वक्त की बता रहा हूँ जब डा. राधाकृष्णन् मास्को में भारतीय राजदूत के पद पर थे । क्रेमलिन की एक सभा में वे भारतीय दर्शन पर बोल रहे थे, कुछ विद्वान व प्रोफेसर्स भी सामने बैठे थे। डा. राधाकृष्णन् ने उनसे पूछा
“आप गॉड (ईश्वर) को नहीं मानते ?” "नहीं, हम गॉड को नहीं मानते।" “आप टुथ (सत्य) को मानते हैं?" “हाँ, मानते हैं !” “आप ब्यूटी (सौन्दर्य) को मानते हैं ?" "हाँ, उसे भी मानते हैं।" “आप गुडनैस (अच्छाई) को मानते हैं ?" "हाँ, उसे तो हम मानते ही हैं।"
क्रेमलिन वालों ने कहा। अमर डायरी
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