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________________ एक मनीषी ने, जैसा कि वह कहता है, कमल से पूछा--कीचड़ के दुर्गन्धमय वातावरण में रह कर भी तुम सदा सुगन्धमय कैसे रह लेते हो? । कमल ने उत्तर दिया-ठीक उसी तरह, जिस तरह कि हमारे सुगन्धमय वातावरण में रह कर भी कीचड़ दुर्गन्धमय रह लेता है ! एक विचारक का कहना है कि मैंने आत्मा से पूछा-जड़ शरीर को धारण करती हुई भी तुम अपनी चेतना को अक्षुण्ण कैसे रख लेती हो? आत्मा ने उत्तर दिया-ठीक उसी तरह जिस तरह कि मुझे धारण करता हुआ भी शरीर अपनी जड़ता को अक्षुण्ण रख लेता है। जिनके जीवन में समय के अनुसार अपने को बदलने की लचक नहीं रहती, वे जड़ हो जाते हैं। समय उन्हें उठाकर फेंक देता है। उर्दू के एक शायर ने बहुत ही सुन्दर बात कही है __ हर मुहर ने सदफ़ को तोड़ दिया, तू ही आमादा-ए-जहूर नहीं। ऐ मेरे भ्रान्त मोती ! जरा अपने आस पास तो देख । देख हर मोती ने अपनी सीपी को तोड़ दिया है, और वह मुक्त हो गया है, सिर्फ एक तू ही बच गया है, जो अपने आप को मुक्त एवं व्यक्त करने में हिचकिचा रहा है। * क्या तुमने गुरु नानक के जीवन की वह बात सुनी है, जो उन्होंने हरिद्वार में गंगास्नान करके पितृतर्पण करते हुए अंध-श्रद्धालुओं को कही थी? गुरु ने देखा कि लोग गंगा में स्नान करते हुए पूर्व की ओर पानी फेंक रहे हैं, अपने मृतपूर्वजों को पानी देने के लिए। उन्होंने भी गंगा में प्रवेश किया और लगे पश्चिम की ओर पानी फेंकने। 52 अमर डायरी - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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