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________________ उर्वर मस्तिष्क एवं समन्वयकारी विचारों ने शंका-कुशंकाओं के सारे कुहरे को हटा दिया। कविजी के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है, कि उन पर नये और पुराने दोनों का विश्वास एवं निष्ठा रही है। सादड़ी के बाद सोजत सम्मेलन के प्रांगण में जब आगम चर्चा का अवसर आया, तो कवि जी का चिन्तन मुखरित हो उठा। उस समय का दृश्य देखने योग्य था और चर्चा सनने एवं मनन करने योग्य थी। केले की सचित्तता, अचित्तता एवं प्रतिक्रमण तथा उसमें पक्खी, चातुर्मासी और सम्वत्सरी को कितने लोगस्स का ध्यान करना? यदि प्रश्न सामने थे। मरुधरा के महान सन्त श्री समर्थमल जी महाराज और श्रद्धेय कवि श्री जी महाराज इस विचार-चर्चा के प्रमुख प्रवक्ता थे। श्री समर्थमल जी महाराज को मूल आगम के प्रमाणों का आग्रह था, वे टीका एवं ग्रन्थों के प्रमाण नहीं चाहते थे। अस्तु, कवि श्री जी ने उनकी चनौती को स्वीकार करते हए कहा, कि मैं मूल आगम के आधार पर विचार-चर्चा के लिए तैयार हूँ । परन्तु दूसरे पक्ष को भी चाहिए, कि वह अपनी बात को सिद्ध करने के लिए आगम के बाहर न झाँके, ग्रन्थों के प्रमाणों के गली-कूचों को ढूँढ़ता न फिरे । केले की अचित्तता, पर्व पर एक प्रतिक्रमण को सिद्ध करने के लिए कवि श्री जी ने आगम के पृष्ठ खोलकर रख दिए। परन्तु श्री समर्थमल जी महाराज अपनी बात पर टिक नहीं सके। आगम की अक्षांश-रेखा को उल्लंघकर ग्रन्थों के उद्धरण देने लगे और ग्रन्थों के आधार पर भी वे केले की सचित्तता को सिद्ध नहीं कर सके । कवि जी का आगम अध्ययन कितना गहन है और उनकी विश्लेषण शक्ति कितने गजब की है, यह देखकर साधु-साध्वी स्तब्ध रह गए। श्रद्धेय समर्थमल जी महाराज का भी यह स्वर मुखरित हो उठा कि 'कवि जी जबरे--जबरदस्त हैं।' कवि जी की समझाने एवं विवेचन करने की शक्ति का मूल्यांकन आप इस बात से कर सकते हैं कि जब कविश्री जी बोलने के लिए खड़े होते, तो अन्य वक्ताओं के समय रिक्त पड़ा स्थान दर्शक साधु-साध्वियों से खचाखच भर जाता और सब अनिमेष दृष्टि से उनकी ओर देखने लगते। . भीनासर सम्मेलन, जिसमें श्रमण-संघ की नौका डगमगाने लगी थी। विघटन के घनघोर बादल उमड़-घुमड़ कर आ रहे थे। उस समय भी कवि जी घबराए ___ नहीं। सम्मेलन के पूर्व बीकानेर में चल रही विचार-परिषद् में सम्मिलित होते ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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