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________________ उनका स्वागत काफी कटु शब्दों में किया गया। एक सन्त ने, जो डंडे के बल पर सम्मेलन पर छा जाना चाहते थे—कवि श्री जी पर नये नेता और इससे भी कुछ अशिष्ट एवं भद्दे व्यंगों का भी प्रहार किया और उन पर सम्मेलन की कार्यवाही में गतिरोध उत्पन्न करने का आरोप लगाया गया। इसमें कुछ बड़े सन्तों का भी उनको समर्थन प्राप्त था, जो कवि जी के व्यक्तित्व के सामने कुछ बोल नहीं सकते थे, परन्तु अन्दर-अन्दर जलते थे। कवि जी का समत्व-योग एवं उनकी दृढ़ता उस समय खुलकर सामने आई। वे व्यंग-प्रहारों से जरा भी विचलित नहीं हए और न अपमान से उनका मन ही खिन्न हआ। वही प्रसन्नता उनके चेहरे पर अठखेलियाँ कर रही थीं, जो सदा-सर्वदा रहती है। वे सत्य पथ पर कदम बढ़ाते समय मान-अपमान की परवाह नहीं करते। क्योंकि इस पथ के पथिकों को सम्मान के स्थान पर अपमान ही अधिक मिलता है। अपमान एवं व्यंगों से घबराकर उन्होंने अपने पथ को नहीं त्यागा। उन्होंने आदर एवं सम्मान के साथ मधुर स्वर में कहा कि मैंने आपकी कार्यवाही में कोई गतिरोध पैदा नहीं किया। गतिरोध के बीज कहाँ हैं, यह आप अपने अन्तर में उतर कर देखें । मैंने तो सिद्धान्त की बात कही है, कि नोखामण्डी से लेकर अब तक आपने जो कुछ कार्य किया है, वह केवल विचार-चर्चा है, उसको निर्णय का रूप भीनासर सम्मेलन में दिया जाएगा। भीनासर सम्मेलन के पूर्व उसे निर्णय या प्रस्ताव नहीं . कह सकते। इसमें किसी को अपना अपमान नहीं समझना चाहिए। क्योंकि हमारा सम्मेलन भीनासर में शुरू होगा और सारे प्रतिनिधि वहीं अपना मत देंगे। अस्तु, उसके पूर्व की गई कार्यवाही को प्रामाणिक एवं निर्णायक कैसे माना जा सकता है? सत्य के सामभे आवेश कब तक ठहरता, उसे तो पराभत होना ही था। क्षमा याचना हुई और कार्यवाही आगे चली। भीनासर सम्मेलन में अनेक उलझनें आईं। आचार्य-उपाचार्य के अधिकारों के प्रश्न को लेकर दो दिन तक आचार्य-उपाचार्य के दो प्रमुख शिष्यों में संघर्ष चलता रहा। सभी सदस्य मौन भाव से तमाशा देखते रहे। उस समय ऐसा लग रहा था कि आचार्य-उपाचार्य श्रमण-संघ के नहीं, उनके दो शिष्यों के व्यक्तिगत हैं। संघ की इसमें कोई दिलचस्पी न देखकर तथा समस्या को अधिक उलझते। देखकर कवि जी उठे और दो दिन में नहीं सुलझने वाली उलझनों को कुछ मिनटों में सुलझा कर रख दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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