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दिखाकर उसे रास्ते से भटकाना चाहते हैं । यदि कोई रास्ता छोड़ कर इधर या उधर चला गया तो उसको खत्म कर डालते हैं । परन्तु जो रास्ता नहीं छोड़ता उस पर भूत-प्रेत का जोर नहीं चलता ।
साधक के लिए देखें तो माया एवं प्रलोभन ही वह मायावी भूत है, जो नाना रूपों से साधक को मार्ग-भ्रष्ट करना चाहता है । जो साधक विवेक की ज्योति जलाए अविचल भाव के साथ अपने मार्ग में चलता रहता है, वह उसके चक्कर से बचकर अपने निश्चित लक्ष्य पर पहुँच सकता है और जो उसके मायावी रूपों में भटक गया, वह अपना विनाश कर बैठा ।
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लोभी मनुष्य वस्तुओं को अन्दर में कैद करके रखता है। पर उसे पता नहीं कि वह स्वयं भी उन कैदियों का कैदी है !
देह, इन्द्रियाँ, धन, मन आदि सब तुम्हारे कैदी हैं। और तुम हो कि इन के इशारों पर नाच रहे हो ? कैसी विडम्बना है ? कैदियों के कैदी बन गए ।
सुख और स्वतन्त्रता चाहते हो, तो उन पर अधिकार रखो। उनसे काम लो । स्वामी बनकर रहो, सेवक बनकर नहीं ।
हनुमान जी के मन्दिर में एक बुढ़िया ने प्रसाद बाँटा । पुजारी सबको प्रसाद बाँट रहा था। एक मिठाई के शौकीन भक्त ने अपने एक हाथ में मिठाई लेकर वह हाथ पीछे कर लिया, और दूसरा हाथ आगे बढ़ा दिया।
पुजारी ने उसकी चालाकी समझ ली। वह मिठाई बिना दिए ही आगे बढ़ गया। भक्त ने बड़ी लालसा से पहला हाथ मिठाई खाने को आगे की ओर किया तो देखा कि उस हाथ की मिठाई कुत्ता खा चुका था । आखिर दोनों हाथ खाली ।
आगम में जो कहा है- "लोहाओ दुहओ भयं" लोभ से दोनों ओर (दोनों लोक में भय होता है । जिस हाथ में मिठाई है, उसे संग्रह वृत्ति के कुत्ते खा जाते अमर डायरी
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