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एक नवयुवक बहुत जिज्ञासा वृत्ति वाला है। एक दिन पछा उसने कि 'राम मर्यादा पुरुषोत्तम हुए हैं, वे सच्चरित्रता के एक महान जीवन्त आदर्श हैं। फिर सीता का नाम उनके नाम से पूर्व क्यों जोड़ा गया? 'सीताराम' की जगह 'रामसीता' कहें तो क्या हर्ज है? ___ मैंने उत्तर दिया-सीता का चरित्र राम से भी अधिक उज्ज्वल है, अधिक तेजस्वी है। सीता के चरित्र में सहिष्णुता और समर्पण का भाव अपनी चरम सीमा पर पहुंचा है। __राम के आदेश से लक्ष्मण जब सीता को वन में छोड़कर लौटते हैं, तो सीता राम को एक संदेश भेजती है___ “मेरे स्वामी । तुमने मेरी कोई बात नहीं सुनी । मेरे पर लगाए आरोप के बारे । में मुझे पूछा तक नहीं। किन्तु खैर अब मेरी एक अन्तिम बात है, और उसे तुम जरूर मानोगे
"भूयो यथा मे जननान्तरे पि
त्वमेव भर्ता, न च विप्रयोग: ।" 'इस जन्म की तरह अगले जन्म में भी तुम्हीं मेरे स्वामी होना, किन्तु ऐसा वियोग मत दिखाना।'
इस स्थिति में साधारण मनुष्य क्या सोचता और सीता ने क्या सोचा, इसकी तुलना करो । अवश्य ही सीता के चरित्र की महानता तुम्हारी समझ में आएगी।
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जीवन की महत्ता क्या है ? इसे तुम नहीं समझ रहे हो, इसलिए दर-दर की ठोकरें खाकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हो, हीरे को कौड़ियों के मूल्य बेच रहे हो। ___ तुम्हारे मन का उत्साह खत्म हो गया है, इसलिए जीवन में तुम्हें कोई सुखद आशा नहीं रही है, और अपना विनाश करने पर तुल गए हो।
तुम भूल गए, नेताजी के जीवन की वह प्रेरणा, जिसने उन्हें नेताजी बनाया था।
अमर डायरी
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