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समझता कि यह एकदम और एक ही व्यक्ति के द्वारा कैसे संभव हो सकेगा? मेरी दृष्टि में समाज-सुधार की चार भूमिकाएँ हैं, और वे चार शक्तियों के द्वारा पूर्ण होनी चाहिए
पहली बात है-परिस्थिति-परिवर्तन, यह काम सरकार द्वारा हो सकता है। दूसरी बात है— हृदय परिवर्तन, यह कार्य सन्तों द्वारा हो सकता है। तीसरी बात है—विचार-परिवर्तन, यह काम विचारकों व साहित्यकारों द्वारा हो सकता है।
चौथी बात है-सेवा-कार्य, और यह काम समाज द्वारा हो सकता है।
अनेकान्त एक टकसाल के समान है, जहाँ सत्य के भिन्न-भिन्न खंड, एक सांचे में ढलकर पूर्ण सत्य का आकार पाते हैं। ___ जो हर घड़ी दूसरों के अवगुण ही देखता रहता है, और प्रत्येक क्षण पराई निन्दा में ही लगा रहता है, वह एक प्रकार का 'ब्लैक बोर्ड' को साफ करने वाला मैला डस्टर है।
आत्मा एक विश्व-संस्था है, जो लोक कल्याणकारी शासन का संचालन करती है।
एक सज्जन हैं, बड़े ठाठ से रहते हैं। कहीं बाहर निकलते हैं तो अवश्य एक नौकर साथ में लेकर । एक दिन दर्शन करने को आए । बात कुछ चल पड़ी, तो बोले—यह तो मेरा नौकर है। _ मैंने सोचा-मनुष्य को कितना अहंकार है कि वह अपने ही जैसे मनुष्य को अपना 'नौकर' (दास) समझता है । परन्तु वास्तव में मनुष्य, मनुष्य का दास कभी नहीं होता, वह तो धन का दास हुआ करता है, क्योंकि स्वामी और दास की कल्पना 'धन' के आधार पर ही टिकी है।
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अमर डायरी
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