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स्वयं एक बार गिरने के बाद, दूसरी बार सम्हलकर चले, वह अनुभवी है। जो बार-बार गिरने पर भी उन्मत्त बनकर चलता रहे, वह अज्ञानी है।
एक सज्जन अपना अनुभव सुना रहे थे, कि वे एक बार तालाब के किनारे पर टहल रहे थे। अचानक एक बच्चा तालाब के किनारे खेलता-खेलता पाँव फिसल जाने से अन्दर गिर गया । रोने चिल्लाने लगा। उन्हें दया आई। खुद तैरना नहीं जानते थे, किंतु फिर भी उसे बचाने के भावावेश में तालाब में कूद पड़े। पर अब तो हालत और बुरी हो गई ? बच्चा तो हाथ नहीं आया, खुद डूबने लगे तो बेतहाशा हाथ पैर मारकर छटपटाने लगे। इतने में कुछ लोग आ गये.
और किसी तैराक ने दोनों को ही निकाल लिया। ___ मैंने उनके अनुभव का भाष्य किया जो स्वयं तैरना नहीं जानता है वह दूसरे को तिराने जाएगा, तो स्वयं भी डूबेगा और दूसरे को भी डुबो देगा। इसी प्रकार जो स्वयं नहीं सुधरा है वह दूसरों को सुधारने का प्रयत्न करेगा, तो वह स्वयं भी बिगड़ जाएगा और दूसरों को भी बिगाड़ देगा।
मनुष्य के जीवन का आनन्द क्या है ? परोपकार ! कर्त्तव्य क्या है? परोपकार ! और ध्येय क्या है ? परोपकार !
कुछ लोग कहते हैं पराए दुःख से दुःखी होना एवं पराए सुख से सुखी होना-सत्पुरुष का लक्षण है। किन्तु मैं तो ऐसा नहीं समझता ! मेरे विचार से यह तो मानव मात्र का लक्षण है। __ अपने सुख में सुखी और अपने दुःख में दुःखी होना, यह तो मानव का क्या, जानवर का लक्षण है।
समन्वय, सहयोग एवं सहानुभूति ही मानवता की त्रिवेणी है।
हमारे समाज सुधारक नेतागण समाज-परिवर्तन की बात करते हैं, और वे चाहते हैं कि यह एकदम से जादू की छड़ी की तरह हो जाना चाहिए। मैं नहीं अमर डायरी
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