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सच्चा मित्र वही ग्रंथों में,
जगत् श्रेष्ठ कहलाया है। मैत्री के प्रण को जिसने,
'अथ' से 'इति' तलक निभाया है। दुग्ध और जल-सी अभिन्नता,
जरा दुई का नाम नहीं। प्रेम पंथ में स्वार्थ हलाहल
का तो कुछ भी काम नहीं।
भूगोल के एक विद्यार्थी से आज बात चल रही थी। उसने कहा-समुद्रों ने संसार का विशाल भू-भाग व्यर्थ ही रोक रखा है। समुद्र का पानी भी खारा है, न पीने के काम आ सकता है, न सिंचाई के, इसीलिए इन्हें 'लवणाकर' कहते हैं। ___ मैंने उससे कहा—'लवणाकर' तो ठीक है, पर वह रलाकर भी तो है ! यदि
आदमी बुद्धि से काम ले, जागृत होकर चले तो उससे लाभ भी उठा सकता है। बहुमूल्य मोतियों का खजाना कहाँ मिलता है ? अनुपम रत्नों का भंडार कहाँ छिपा है? यह सही है कि साधारण लोगों के लिए तो वह ‘लवणाकर' ही है, किन्तु जो परिश्रमी हैं, साहस और विवेक से काम करते हैं, उनके लिए वह 'रत्नाकर' भी है।
यह जीवन भी समुद्र है। आलस्य और बुद्धिहीनता के शिकार होते रहे तो यह जीवन 'लवणाकर' के तुल्य निकम्मा लगेगा। मगर पुरुषार्थ और विवेक से काम लिया तो वही 'रत्नाकर' के समान अमूल्य खजाने का भंडार भी है।
दूसरे को गिरता देखकर जो अपने को संभाल कर चले, वह ज्ञानी है।
अमर डायरी
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