SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने श्रम और शक्ति के द्वारा यथावसर जनता जनार्दन की सेवा किए बिना प्राप्त साधन सामग्री का अकेले उपयोग करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। सस्नेह एवं सादर जनता जनार्दन को अर्पण करना ही वस्तुत: ईश्वरार्पण है। अपने और दूसरों के सुख की आधारशिला एक ही है, और वह है-संयम । जितना जितना संयम, उतना उतना सुख ! जितना जितना असंयम, उतना उतना दुःख ! सम्राट से पूछा- तुम्हारी शक्ति क्या है? उसने हाथ उठाया--अपने ऊँचे महलों, दुर्गम दुर्गों और विराट सेना की ओर। संत से पूछा-तुम्हारी शक्ति क्या है ? उसने ऊपर हाथ उठाया, और वापिस मोड़ लिया, अपने हृदय की ओर ! पहला शक्ति के लिए बाहर का भिखारी है। दूसरा शक्ति के लिए एकमात्र अन्तरंग का स्वामी है। संत की तुलना सैनिक से की जाती है; किन्तु सैनिक एक संहार का प्रतीक है, और संत उद्धार का। सैनिक अपने को होमता है—दूसरों (शत्रु) के विनाश के लिए। संत अपने को होमता है—दूसरों (विश्व) के विकास के लिए। सावधान ! अपनी जबान पर विवेक की लगाम चढ़ा दो ! अपने होठों पर मौन का पहरा बिठा दो ! कहीं तुम्हारे शब्दों का घोड़ा ही तुम्हें अशान्ति और क्लेश के महागर्त में न गिरा दे? ध्यान रखिए। अमर डायरी 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy